बंधन
आशा-निराशा के इस गगन में,
सब पल दो पल के मेहमान हैं,
उम्मीद से भरे यह पुतले सारे-
बंधनों से है बंधे पड़े,
इसको अपना उसको पराया कहने वाले ,
पल-दो-पल के यह मेहमान सारे,
कल का जिन्हें पता नहीं -
सदियों तक का सोच रखने वाले,
आशा-निराशा के इस गगन में,
एक छलावा सा दिखनेवाले,
यह इंसानों की बस्ती है।
जरा संभल कर के चले !
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इंसान है-हम !
गुस्ताख़ है- हम,
बच के रहना इंसान हैं- हम,
सदियों की सीख से-सीखा है
एक ही शरीर में अब राम तो-
रावण भी वास करता है,
इंसान है इंसानी फितरत को अच्छे से जानते हैं,
इसीलिए कह रहे हैं बच के रहना,
भरोसा थोड़ा सोच कर करना,
आंख बंद तो कभी आंख बंद तो कभी न करना,
इंसान है-हम,
हमसे थोड़ा संभल कर रहना।
दोस्त कम हो रहे-है !
किसको सुनाऊं आशिकी के किस्से,
अब तो सारे आशिक हुए बैठे हैं,
अब तो दोस्त भी कम हो गए हैं,
सब प्यार कर बैठे हैं,
अब कौन सुनेगा वह किस्सा गुस्ताखी का,
सब अपनी अपनी कहानी में डूबे पड़े हैं,
दोस्त आशिक जो बन बैठे हैं।....
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