मैं गांव की गली
मैं गांव की गली
मैं गांव की संकरी गली-
वो शहर की चौड़ी सड़क -
कहां मिलाप होता हमारा -
मैं कांटों-कंकड़ो- कच्ची मिट्टी - नंगों पैरों का आशिक -
वो सैंडल - जूते - कारों की शौकीन,
मैं किसानों की पैरों की धूल -
वो कारों की धुंआ -
मिलाप मुश्किल है हमारा -
पर हमें यह मेहरबानी होती है -
उनके रव्बों की दवा -अक्सर हमारे गांव में होती है,
वह आती है तो एक भीड़ सी होती है-
गांव में अलग ही रौनक होती है -
जब शहर कभी गांव आती है ,
वह सजी-धजी - धन्नी- बड़े महल की रौनक है -
उसके यहां मखमली सड़कें - महॅंगी शराब -
चमकीले अत्याधुनिक स्ट्रीट लाइट्स -
मैं उसको सजाने - सवारने वालों की कटें - फटे पैरों
- रूखे -सूखे-होठों की जगह हूं।
मैं कच्ची सड़क -
वो शहर की अत्याधुनिक सड़क -
मिलाप मुश्किल है -
पर आश हम दोनों हैं एक - दूसरे की !. . . 🌺❤️🌺
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