आत्मपरिचय

 मैं अपने ही बातो मे मदमस्त रहा करता हूँ,

औरो से थोड़ा दूर रहा करता हूँ,

मुझे पसंद नही छोटी-छोटी बाते,

मै अक्सर शांत रहा करता हूँ,

लोग मुझको वरूण बुलाते है,

मगर मै खुद को मदमस्त बोलता हूँ,

लोग क्या सोचे यह मैं नही सोचा करता हूँ,

कुछ लिखने का है-शौक,

कुछ पढ़ने की लालसा,

मैं अक्सर यूँ ही मदमस्त रहा करता हूँ,

लंबी सोच-विचार मे -अक्सर गोते लगाता हूँ,

मैं कहने को वरूण,

अक्सर लोगो से दूर रहा करता हूँ,

पिछे से सीखता हूँ-आगो का ख्याल रखता हूँ,

बिती बाते मै अक्सर भूल जाया करता हूँ,

मगर कभी पुराने यारो को नही भूलता हूँ,

मुझे स्कूल का पैटर्न पसंद नही,

नंबर से आके लोग मुझे-नापसंद है यह मुझको,

शायरो की बातो पर अक्सर डूब जाया करता हूँ ,

शायरी पढ़ने-लिखने का भी रखता हूँ शौक,

उतना अच्छा नही लिख पाता मगर इतना जरूर लिख लेता हूँ,

कि खुद पे नाज कर सकूँ !

मैं अभी सतरह का हूँ,

चार लोग है मेरे परिवार मे,

मुझे मिला के पाँच हो जाते है,

सबका अपना अलग-अलग रंग है,

छोटी थोड़ी गुस्सैल क्योकि सर पर सबने चढ़या है,

मगर सबसे ज्यादा शैतान वही है,

घर उसके बिना सूना लगता है,

बीच वाली अंदर की गुस्सैल है,

मगर घर वह अच्छे से संभालती है,

रोटी-सब्जी-घर साफ और चावल 

सब काम कर लेती है,

मै सबसे बड़ा यह अपनी कहानी है,

छोटी-छोटी बातो पर गुस्सा करना,

मेरी कहानी है,

फिर माँ है जो हर किसी की माँ जैसी है,

मुँह पे बुरा-भला पर पीठ पीछे तारीफ करती है,

हमारे हक के लिए हम से ज्यादा लडती है,

पिता थोड़ा शांत रहता है,

घर की जिम्मेदारिया अच्छे से संभालता है,

मुझसे थोड़ा बिगड़ा-बिगड़ा रहता है,

मगर मै समझता हूँ कि लो ऐसा क्यो करता है,

मै सब की रंग की कद्र करता हूँ,

मगर खुद को कभी खोने नही देता हूँ,

मैं बस यूँ ही मुस्कुराया करता हूँ,

हालात कितने भी क्यो ना हो जाय कठिन मैं 

थोड़ा डर के फिर जुट जाया करता हूँ,

अपने बारे मे अच्छा और बुरा जानता हूँ,

दोस्त कम है क्योकि बात थोड़ा कम करता हूँ,

मगर उतने मे ही मदमस्त रहता हूँ;

एक का नाम अंकुश है-पागल हर दोस्त की तरह-

बाते वही लडको वाली,

मगर दिल का साफ है,

हर काम के लिए तैयार रहता है,

पैसे लूटाने मे भी अय्याश है,

दूसरा सरोज है-वो भी वैसा ही है,

मगर कहानियाँ बड़े अच्छे तरीके से बनाता है,

और बताता भी है,

तीसरा विसाल है-दिला का वो भी साफ है,

बस साथ रहना चाहता है शायद इसलिए खास है,

चौथा सूरज है, थोड़ा कम तो नही बोलूंगा,

क्योकि जान तो वो भी है-हमारी दोस्ती का,

बाकि मै सबसे भाइचारे वाली दोस्ती रखता हूँ,

मै अपने आप मे मदमस्त-गुमसम औरो के लिए बोर रहा करता हूँ ।

मै लोगो द्वारा वरूण कहा जाता हूँ !

मै वरूण हूँ !



गाँव पर कविता


हिंदी कहानी :- वृध्दाश्रम



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