गाँव


फिर उन गलियो कि याद ने मुझे- झकझोरा है,                  मेरे गाँव की खूशबू ने मुझे-आज फिर से पुकारा है !          भूलाने कि कोशिश बारंबार कराती है-ये शहर की  रोशनी,    मगर कभी-भी वो याद नही बनने देती है-खुद को मेरे गाँव की माटी ।.....

 

    

तंग गलियाँ थी,

 मगर खुले मैदान थे,

 गांव की बात ही कुछ और थी,

 कच्ची मिट्टी की राहे थी,

 मगर पाँव को आराम थी,

 कमाते थोड़ा कम थे- थोड़ी पेट भारती थी,

मगर नींद माँ कसम बड़ी गजब की आती थी, 

कड़ी धूप में आम के बगवानो में दो-चार चले-चपेटो के साथ, 

हाथों में पत्थर लेके निशान लगाते थे,

 और बदले में हम आम पाते थे,

 वह छडी लेकर दौड़ता था,

 हम पकड में नहीं आते थे,

 कसम से उन यारो के साथ 

मजा बहुत आता था,

गाँव की हर घर से नाता था,

हर दरवाजे पर हमारा समाचार पहुँचता था,

हर खिड़की पर एक खिलता चेहरा नजर आता था,    

गाँव

    गाँव की बात ही कुछ और थी,

    हर खलिहान से हमारी होड़ थी,

    हर मीठे बगीचो से हमारी दोस्ती थी,

    गायो से मोहब्बत थी,

   बकरियो से घर-घर का नाता था,

   नदियो से माँ-बेटे का प्यार,

   माँ कसम गाँव बहुत याद आता है,

  वो तंग-गलियाँ-अब बहुत सताती है,

  वो आम के बगीचे बड़े याद आते है,

  वो जिन्ह मैं चेला कहता था,

 वो अब आँखो मे आँसू दे-जाते है,

 गाँव से बिछड़ा तो पता चला,

 कि गाँव भी क्या चीज होती है,

गाँव की बात ही कुछ और होती है !...

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