उम्र - सोलह

उम्र - सोलह


उम्र अभी 16 की थी-
 बराती हजार थे -
 कुंड के पास बैठी थी - 
एक बच्ची - एक बुड्ढे के साथ में, 
बच्ची ने अभी - दर्द छुपाना नहीं सीखा था,
जो झलक रहा था - 
उसके माथे के आंचल से - 
वह दर्द उसके चेहरे पर - 
ढोल थे -नगाड़े थे -
पटाखों का शोर था -
 मस्ती थी - आलम थी -
चारों -ओर रौनक और खुशहाली थी - 
पर सब कुछ फीके थे -‌बेसुरे थे - 
 उस बच्ची के दर्द के सामने -‌ 
 देखकर वो दृश्य - 
द्रवीत हो रहा था - मन
 बूढ़े के साथ में बच्ची का कन्यादान। . . .

कन्यादान


कन्यादान तो सबसे बड़ा पुण्य है -
 यह कहकर 16 वर्ष की बेटी -
 का कन्यादान कर वह -
 कठोर पुण्य कमा रहा था- स्वर्ग में,
 नन्ही चिड़िया के पंख कुतेड़ कर -
 खेलने की उम्र में -
 उसको जिम्मेदारी सौंपकर -
 कन्यादान के वक्त थोड़ा रो दिया था  - 
जैसे बड़ी प्यारी चीज - खोई हो उसने,
 पर वह  कन्यादान कभी सुखी नहीं बैठ पाए -
 जाने वो पुण्य पाप क्यों पाप बन गया था उसके लिए! ‌. . .



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