निभाओगी क्या ?
निभाओगी क्या ?
एक चांद बनाई है - मैंने -
उसको सजाओगी तोसे लो -
मिला मैं वैसे कयों से हूं -
और आगे भी मिलता रहूंगा -
पर तुम मुझको- खुद से मिला सको तो बोलो -
आगे तक साथ चल सको - तो बोलो,
मेहरबानी हम पर मत करो -
हमको मोहब्बत की मेहरबा जरूरत नहीं -
तुम फिर भी मुझको मोहब्बत से राब्ता -
करा सको तो बोलो -
पायल मैंने सुने हैं कइयों के -
तुम बिन पायल रुनझुन सुना सको तो बोलो -
वफा मैंने पहले भी किए हैं बहोत -
पर तुम मुझे फिर उन्ही खताओं -
की ओर ले चलोगी और मैं हंसते-हंसते जाऊं -
यह करा सको तो बोलो -
लेकिन दिल का खता नहीं दोगी -
यह सब जानते हुए तो बोलो -
अगर निभा सको तो बोलो,
मेरे चांद में धब्बे बहुत है -
पर फिर भी उसकी चांदनी बन सको तो बोलो,
अरबों की भीड़ में -
खोने वाली मेलों में -
तुम मेरा कसके हाथ पकड़ सको तो बोलो -
बिछड़ने के समय - गले मिल सको -
तो बोलो -
घर निभा सको - तो बोलो ! . . .
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