Zindagi यूं ही आगो बढ़ती रही ...

 Zindagi यूं ही आगो बढ़ती रही ... 

जिंदगी यूं ही आगो बढ़ती रही - 

कई सपनों से गुजरती रही 

 कभी मैं उससे आगे - कभी वो मुझसे आगो,

 बस यही खेल सारी उम्र - 

 जिंदगी मुझसे और मैं जिंदगी संग खेलता रहा -

कभी बच्चा-सा मैं - 

 तो कभी वो मुझको बच्चा प्रतीत करवाती रही -

सांझ - सुबह- दोपहरी - हर क्षण मुझको संजोती रही-

 गम आँखों में देती - मुस्कान होठों पर बिखेड़ती रही-

जिंदगी यूँ ही आगों बढ़ती रही - 

 कई सोपानों से गुजरती रही - 

 हकीकत से ज्यादा ख्यालों में तड़पाती रही,

 कहीं बूँद-बूँद को तड़पाती कही प्रशांत में मिलाती रही,

 दोनों काम के नहीं हैं -  मेरे,

यह सोचता था पहले, 

पर जिंदगी ने मोती मुझको -

समुंद्र के खड़े पानी में डूबकी मारकर निकालना सिखा दिया - 

मरुभूमि मे सीसा देकर  मुझे आईनों का दीदार करा दिया,

जिंदगी ने मुझको मुश्किल देकर - 

जिंदगी जीने का मतलब सिखा दिया !

             . . . वरूण


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