Zindagi यूं ही आगो बढ़ती रही ...
Zindagi यूं ही आगो बढ़ती रही ...
जिंदगी यूं ही आगो बढ़ती रही -
कई सपनों से गुजरती रही
कभी मैं उससे आगे - कभी वो मुझसे आगो,
बस यही खेल सारी उम्र -
जिंदगी मुझसे और मैं जिंदगी संग खेलता रहा -
कभी बच्चा-सा मैं -
तो कभी वो मुझको बच्चा प्रतीत करवाती रही -
सांझ - सुबह- दोपहरी - हर क्षण मुझको संजोती रही-
गम आँखों में देती - मुस्कान होठों पर बिखेड़ती रही-
जिंदगी यूँ ही आगों बढ़ती रही -
कई सोपानों से गुजरती रही -
हकीकत से ज्यादा ख्यालों में तड़पाती रही,
कहीं बूँद-बूँद को तड़पाती कही प्रशांत में मिलाती रही,
दोनों काम के नहीं हैं - मेरे,
यह सोचता था पहले,
पर जिंदगी ने मोती मुझको -
समुंद्र के खड़े पानी में डूबकी मारकर निकालना सिखा दिया -
मरुभूमि मे सीसा देकर मुझे आईनों का दीदार करा दिया,
जिंदगी ने मुझको मुश्किल देकर -
जिंदगी जीने का मतलब सिखा दिया !
. . . वरूण
1. मैंडमो ( एक देहाती और ऑफिस -ऑफिस)👈❣️
2. शरीर से आत्मा का बिछड़न:- इतना मुश्किल क्यों होता है ?
my new website please visit:
Comments
Post a Comment