#बेरोजगार
Berozgar(बेरोजगार)
वो शख्स जो बड़ा- बेफ्रिक-सा था -
गलियों में यूं ही जो मदमस्त घूमा करता था
हर मौसम में जो सहज-भाव से जीया करता था-
जो सर्दी- गर्मी-बारिश-धूप सब मौसम में नाचा करता था -
आज बसंत में भी मुस्कुरा नहीं पाया-
जीन गलियों मे बेफिक्री से घूमा करता था -
अब-भी घूमता है-
पर वो चेहरे पर मदमस्तानापन नहीं होता उसके-
बेरोज़गारी ने वो दाग दिया उसे-
कि मस्कुराता तो है-
पर उसकी मुस्कराहट में वो बात नहीं रही अब-
घर में जो बिन कुछ किय ही -
हूकूमत किया करता था-
आज भी कुछ नहीं करता -
पर अब वो नज़रें मिलाने से डरता है -
ऐसा नहीं कि ,
घर वाले कोसते हैं उसको-
पर अब वो उस बिस्तर पर चैन से सो पाता भी नहीं है-
जिस बिस्तर पर वो सारा दिन और रात सिर्फ चैन-चैन
और सूकून की तलाश में बीता देता था।
अब-जब उसका बूढ़ा बाप उसको देखता है-
वो पहले ही डरता था -
पर अब शर्मा जाता है -
इससे भी ज्यादा दुख की बात क्या होगी -
जिस बाप पर को गर्व करता था
आज वो अपने बाप में अपना गर्व चोरी-चोरी
ढूंढने की कोशिश करता है ! . . .
वरूण
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