#पिता

                      #पिता


माँ के जितना ही प्यार करना - पर इजहार नहीं किया जाता है-

 कैसे निभाया जाता है ये - 

पिता का किरदार_

ये पिता बनने के बाद ही पता चलता है,

धड़कती है एक दिल- उसके सीने में भी,

पर धड़कन को छूपा के रखता है - 

इसलिए अपने बच्चों के द्वारा - 

वो एक पत्थर-दिल इंसान समझा जाता है,

अजीब होता है - ये पिता का किरदार,

 हर सपने को यहीं अपने पसीनों से - सींचता है- 

पर फिर भी गरजने वाला बादल ना जाने कैसे बना रह लेता है-

 दिल में तो ज्बाजत इसके भी  होता है, 

पर ना जाने  लाचार कितना होता है- कि ईजहार करने से डरता है,

बोलता है-जब भी बोल-कड़वा ही बोलता है- 

मिठाई के पैसे यहीं दे- 

कपड़ों के लिए भी - अपनी फटी जेब से पैसे यहीं निकाल के देता है-

 पर ना जाने त्योहारों में - इसके शरीर पर -‌ 

वही पुराने साल-वाला कपड़ा क्यों होता है?

क्यों ये त्योहारों के दिन भी लेट -से घर आता है?

क्यों ये मिठाई खाते वक्त-नजर बड़ी मुश्किल से आता है? 

कितना अजीब होता है, पिता का किरदार-

ऊधारी सब सह लेता है अपने बच्चों कि,

पर लेने के वक्त चुप रहता है-

खुद के जूते सालों -साल नहीं बदलें जाते हैं,

 बच्चों के  हर छः महीने पर बदल देता है-

अपनी फटी तहमद पर शान करता -  

जब वो अपने बच्चों को नए-नए कपड़ों में देखता है-

कितना लाचार होता है- एक पिता,

बेइंतिहा मोहब्बत। करता है- 

पर छूपाने की उतनी ही बेइंतिहा कोशिश करता है-

कैसे निभाया जाता है-यह एकतरफा मोहब्बत का किरदार- 

यह सच में प्यार हो जाने के बाद पता चलता है-

एक बाप अपने बच्चों के लिए- पूरा आसमां होता है! ...

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अजीब एक पहेली हूं-मैं

साधारण-सी दुनिया का-

 एक अनसुलझी पहेली हूं-मैं,

 खुद में डूबा अस्तित्व मेरा-

 अजीब एक कहानी हूं-मैं,

 ऊपर से शांत - भाव शून्य-

 अंदर से शोक-विहल हूं-मैं,

 एक निर्जीव-सा बीज देखने में-

 माटी में अंदर पनप रहा है-

 चुपके से अस्तित्व मेरा-

 अंदर है सुनामी मुझमें - 

बाहर से सब अच्छा-अच्छा है-

 मुझसे मत पूछना हाल मेरा-

 मुझे खुद नहीं पता कितना बेहाल 

                 हूं-मैं,

खुद से परेशान - खुद से भटका-

 एक विहग हूं मैं!...

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