अपना दर्द - अपनों से

              अपना दर्द - अपनों से 


हमने सुना कर देखा है-  अपने दर्द को-अपनों से,

पूछते ऐसे हैं जैसे- दवा बन जाएंगे,💊💊

अगर वह भी काम ना आई - तो दुआ मांग लायेंगें,🤲

सारे वहम थे मेरे अपने भी- और मेरी उम्मीदें भी, 

दर्द से ज्यादा दर्द -दिया फिर अपनों ने ।

हमने सुना कर देखा है अपने दर्द को- अपनों से,

कम तो नहीं हुई दर्द- मगर वफाएं- बेवफा बन गए-

मेरे अपने ही जनाब, मेरे दर्द 💔💔की वजह बन गए।

जिनको हकीम समझता था-अपना,

वक्त गुजरा तो पता चला-यह बीमारी उन्ही की फैलाई हुई है,

पहले दर्द पूछना और फिर बाकी अपनों में बांटना,

ये अपनों की देन है !

हमने सुना के देखा है अपने दर्द को:-कम तो नहीं हुई दरारें,

रिश्ते खो गए सारे- हमने सुना के देखा है,

अपने दर्द को-अपनों से, 

मिठाइयों की तरह बांटा था अपनों ने-अपनों से! 

( पर हर अपना ऐसा नहीं- मां को बताओ दर्द कम हो जायेगा आपका)


इंसान:- हम क्या से क्या होते जा रहे हैं 👈❤️

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                      आईना

आईने के सामने बैठक करता हूं मैं अक्सर-

ढूंढा करता हूं खुद ही कमियां और खूबियां उसमें,

कभी खुद को बच्चा सा पाता हू-एक नन्हा-सा,

जिसका शरीर बड़ा हुआ है- पर मन अभी भी वही है-

एक बच्चा वाला,👼👶

तो कभी झांक लेता है- मेरे अंदर से एक युवा-

चुपके से करता है प्रेम की बातें मुस्कुराते-मुस्कुराते ,

फिर अचानक एक समझदार इंसान दिखता है मुझको-

आईने में,

यह कहते हुए की प्रेम अभी अच्छा नहीं- 

परिवार की जिम्मेदारी- तुम पर है- 

फिर युवा और बच्चा दोनों अकस्मात समाप्त हो जाते हैं-

एक भीषण द्वंद में- एक गहरी सोच में- एक गहरी अर्थ में,

खोजते हुए अपने-आपको।

आईने के सामने बैठा करता हूं मैं-अक्सर,

आईना चुपके से खिल्ली उड़ाता है मेरी-

मेरे नादान सवालों पर, 

और पूछता है क्या ढूंढता है-मुझ में?

क्यों झांकता है-मुझे में, 

यह सुन मेरे अंदर का एक बच्चा फिर जाग उठता है- पर ना जाने 

कैसे समझदार बन जाता है,

मेरा आईना मेरा बहुत रुप दिखाता है- 

और फिर खिल्ली उड़ाता है कि-

क्या से क्या हो गए,

नादान ही सही थे- बड़े क्यों हो गए,

वह आइना बहुत रुलाता है-मुझको,

मेरे इक सवाल पर-

सवालों के पहाड़ बना देता है-

वो मेरे आस-पास ।

और मैं नि:शबंद सबसे समझदार हो जाता हूं- 

जो एक सवाल है।....

युद्ध, द्वन्द्व


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