मेरी धड़कनों में सावन आज-भी कैद है....
नर हो तो....
हवा में हाथ लहराते चलो,
मेहनत अपनी मुट्ठी में है,
वह तो करते चलो,
किस्मत का पक्का नहीं-तुम्हारा तो पक्का है ना,
अपना फर्ज को निभाते चलो,
नर में जन्मे हो तो नर जैसा कर्म करो,
डर-डर के जीना तो-मृत होने जैसा है,
मृत्यु तो सिर्फ एक बार मारती है,
किंतु डर बार-बार मारती है,
हर-बार मारती है,
बड़े सौभाग्य से मिलता है- यह मानव योनि,
इस योनि में जन्म में हो तो,
कोई नारायण जैसा कर्म करो,
नर और नारायण में कोई फर्क नहीं,
तुम में नारायण का ही अंश है,
तुम नारायण से कम नहीं,
बस विश्वास की कमी है,
बाकी तुममें वह सब है-जो एक नर को नरोत्तम होने के लिए चाहिए।
मेहनत अपनी मुट्ठी में है,
अपना कर्म तो करते चलो,
नर हो तो नर जैसा कोई कर्म करो!...
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मेरी धड़कनों में सावन आज-भी कैद है....
मेरी धड़कनों में सावन आज भी कैद है-
आंखों में रोज छलक आती है,
तुम्हारा नाम जैसे हवा है-
बादलों को हमारे अश्कों पर ले आता है,
रेगिस्तान कितनी भी हो-बंजर कितनी भी हो,
सावन का सावन का उपवन ले-ही आता है,
मेरी धड़कनों में सावन आज भी कैद है!...
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