-ए- जिंदगी

            -ए- जिंदगी 


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गर कभी मिल गया- मैं तुझे-ए-जिंदगी,
मैं तुझसे-पूछूंगा-
तूने ऐसा क्यों किया-ए- जिंदगी,
सफर बहुत लंबा दिया-
हमसफर की तलाश में,
हम से हम ही को छीन लिया, -ए-जिंदगी;
गर कभी मिल गया- मैं तुझे-ए-जिंदगी,
मैं तुझसे-पूछूंगा-तूने मुझ पर उपकार किया या -
दूत्कार दिया मुझको जिंदगी देकर- तूने क्या किया?
 गर कभी मिल गया-मैं तुझे-ए-जिंदगी -
मैं तुझसे पूछूंगा-तूने ऐसा क्यों किया-ऐ- जिंदगी,
 गर तुझे मैं मिल गया-
 बहुत सवाल पूछूंगा ए- जिंदगी !... 

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यह कैसी आदत लगती जा रही है-
इंसान, इंसान-को-इंसान समझना -
भूलता जा रहा है। 💔💔💔

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         हकिकत को आजमाया नहीं-

            अपनाया जाता है !...


विपत्ति बुलाता कोई नहीं-
फिर भी आ-जाती है,
मरना चाहता कोई नहीं-
फिर भी मर जाते हैं,
जीना कोई नहीं चाहता- फिर भी जिए जाते हैं,
मुश्किल है समझना जिंदगी को-
फिर समझना ही क्यों चाहते हो?
जी लो !
समझने-समझाने के किस्से होते हैं।
जिंदगी नहीं!
यह जैसी है-वैसी ही है ।
यह कोई ख्वाब नहीं हकीकत है।
और हकीकत को आजमाया-नहीं अपनाया जाता है।

०००००० वरूण

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सो के सपने देखें जाते हैं-

      जिंदगी नहीं !....











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