रिश्ता

                    रिश्ता 

कितना गहरा है ना स्याही- कागज का रिश्ता भी,
सब कुछ जानती है सत्य-असत्य, अच्छाई-बुराई,
दोनों एक-दूसरे से,
करते हैं-कितनी गहरी बातें अक्सर-हर रोज एक दूजे से,
जो बातें कही नहीं जाती इंसानों-को-इंसानों से,
अपनों-को-अपनों से वह भी कह देती है,
यह हौले से एक-दूजे से,
कितना गहरा रिश्ता है-ना ,
स्याही का कागज से,
बातें कितनी दफन है-ना राजे कितने कफन ओढ़ें हैं ना-
स्याही का कागज के सीने में,
मगर फिर भी नहीं छूटते यह,
एक-दूजे से,
भले ही मर जाए यह गल-गल के ।
कितना गहरा रिश्ता है ना- स्याही का कागज से,
दिल का एहसासों से,
पृथ्वी का समुंद्र से,
कितना गहरा रिश्ता है ना स्याही का कागज से!... वरूण

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Na हो 😘इश्क मुझे जल्दी से.....


मैं नहीं मिलना चाहता जल्दी किसी से-
मगर जब मिलूं- तो मिलना चाहता हूं-
स्याही का जैसे रिश्ता कागज से,
जो चलती नहीं बेवजह-नहीं जल्दी से,
मैं नही चाहता इश्क हो किसी से,
मगर हो तो हो ऐसे जैसे स्याही का कागज से,
मैं नहीं बताना चाहता अपना राज किसी के कानों में,
लेकिन अगर बताऊं तो-बताना चाहता हूं,
स्याही की तरह कागज से,
मैं नहीं जुड़ना चाहता जल्दी से किसी-से,
पर जूडूं तो ऐसे जैसे स्याही-कागज से,
मैं नहीं बनाना चाहता ऐसा रिश्ता जो-
बिखर जाए किसी,
तिसरे के आ जाने से,
मैं चाहता हूं बनाना रिश्ता:-
जैसे स्याही का कागज के साथ,
जो एक बार लिख गय-
तो अलग नहीं होते एक अंत तक एक-दूजे से,
मैं नहीं चाहता कि हो-
 इश्क मुझे जल्दी से।
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