ज़ख्म अब नासूर

                  ज़ख्म अब नासूर 

ज़ख्म अब नासूर बन गया है,
हमारे अपने ही-परायें बन गए हैं,
किस्से करूं शिकायत-
शिकायत को‌ हमीं से शिकायत हो रखी है,
दर्द दिल के- दवाएं बन गई है,
तकलीफ तों है-जीने में,
मगर बिना तकलीफ के -
जीना अब मुमकिन नहीं है!...👇
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        आदत

आदत लगती जाती है-
लोग बिछड़ते जाते हैं-
जिंदगी अपनी मस्ती में गुजरती जाती है,
हम वक्त के साथ संभलते जाते हैं,
आदत लगती जाती है-
लोग बिछड़ते जाते हैं-
धुम्रपान तो अंदर जाके मारता है-
लोग तो बाहर से अंदर-
अंदर से बाहर हो के मारते हैं!....

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                      मुसाफ़िर

राही है-चलना काम है-अपना,
जमीन से जुड़े हैं-पर बिछड़ना धर्म है-अपना,
रही है-मुसाफिर है-जिंदगी नाम है-इसका,
हर दौर से गुजरना-फर्ज है-इसका,
कुछ पल इधर बैठे-कुछ पल उधर बैठे,
कभी हंसे तो कभी आंखों से आंसू भी बहाए हैं,
जिंदगी कहते हैं इसको-इसको भी गुजर जाना है-
 एक दिन !.....

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              भा

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मुगलों ने-तुगलकों ने- लोदियों ने-अंग्रेजों ने-
मुझको लूटा मेरे अपनों के-
हाथों गैरों ने,
मगर मुझे कभी बिल्कुल-निर्वस्त्र नहीं होने दिया मेरे बेटों ने,
जब अखबार का गुरूर सिर पर था-
जिल्ल-इल्लाही सका नाम था,
मानसिंह उसके म्यान में कैद तलवार था!
तब भी मेरा वीर पुत्र-मेरी लाज रखने के लिए,
महाराणा को मरना मंजूर था।
मगर एक डकैत को खुदा कहना नहीं-
भगवान मानना नहीं !
है कई और किस्से मुगलों-लोदियों और भी कई डकैतों का,
मगर आज तक ना लूट पाए वो‌ खुलकर के,
सिकंदर आया-पोरस का-
शौर्य देख शर्माया,
अंग्रेज आए-कहा ना
मुझें गुलाम बनाया,
मेरा दमन करना शुरू किया,
मेरे मान को बेचने की सोची,
ऐसा नहीं कि उन्होंने बेचा नहीं मुझे,
मगर आज भी शान से मैं हूं-भारत !
क्योंकि मैंने सिर्फ आस्तीन के सांप नहीं,
वासुकी-शेषनाग भी जन्म दिए थे-दिए हैं;
है कई और किस्से से मेरे जन्म से अभी तक के,
मगर आज तक न लूट पाए वह मुझे खुल करके,
क्योंकि मैं धन में नहीं जन में हूं,
मैं मिट्टी में नहीं- मनुष्य में हूं,
मैं भारत हूं!...








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