भूखा-पेट
एक बाजार से गुजरा,
एक तमाशा चल रहा था वहां,👇
पुतलों को धागे में बांध के नचाया जा रहा-
था वहां,
यह मेरी पहली नजर ने देखा,
थोड़ा देर रुके तो देखा जो पुतलो को नचा रहा था,
वह अब अपनी सिर से टोपी निकाल,
वह नाचने लगा यह-वहां,
किसी ने एक डाले किसी ने दस,
सबसे मांग कर वापस गया वह अपने घर,
जो मेरी दूसरी नजर ने देखा,
वह है कि:-
उन दोनों को नचा रहा था एक भूखा पेट वहां ! 👇
अबला-हो !....👇
हे!नरी किसने कह दिया तुम अबला हो?
तुम-तो एक सबला हो;
तुम ही आदिशक्ति की अवतार हो,
भविष्य की आज हो;
संसार की लाज हो,
संसार की सृजनकार हो,
तुम ही दुर्गा-तुम ही चंडी-
तुम ही काली की अवतार हो,
स्वयं शिव-शंभू की प्रतीक्षा की आधार हो,
विष्णु की मधुरता की सार हो,
ब्रह्मा की सृजनता की आकार हो,
हे!नारी किसने कह दिया तुम अबला हो?
तुम कौरवों की जननी- तो पांडवो की पंचशीला हो,
हे! नारी-तुम ही विश्व की मर्मज्ञता की किला हो,
तुम्हें पाकर ही शिव सत्यापित हुए,
तुम्हें सोच कर ही ब्रह्मा सृजनकार हुए,
तुम्हें समझ कर ही विष्णु पालनहार हुए,
हे! नारी किसने कह दिया तुम अबला हो,
तुम तो एक सबला हो!
माटी की बीज से पेड़ तक की क्रिया हो,
संसार के महावीरो कि तुम ही गंगा हो!
तुम से घर चले-घर से समाज-
समाज से राष्ट्र-राष्ट्र से विश्व-विश्व से ब्रह्मांड,
अगर तुम नहीं रही तो सब कुछ हो जाएगा राख,
तुम ही तो हो त्रिदेवों की आदिशक्ति की आधार हो,
फिर किसने कह दिया तुम अबला हो!
तुम ने मान लिया खुद पर ना ध्यान दिया,
इसलिए तुम अबला हो!
वरना तो संभाजी की पालनहार भी एक महिला थी,
पांडवों की वन की रोटी थी,
चाणक्य की सहनशीलता की शीला थी,
मारुति की बजरंगी की महिमा थी,
कल की आज थी, तुम्ही आने वाले कल की आज हो,
तुम ही विश्व की सृजनता की आधार हो!
फिर तुम कैसे-अबला हो!
तुम ने मान लिया-खुद पे ना ध्यान दिया,
इसलिए तुम अबला हो,
इसलिए तुम अबला हो!... वरूण
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