बचपना
बचपन की गलतियां-नादानियां हुआ करती थी,
दांतों में उंगली-शैतानियां कहलाती थी,
एक दशक बीता तो-दूध के दांतों से नाता
एक-एक करके टूटने लगे, दूसरे दशक में
पक्के दांतों की मंजिलें मीनारे बनाने लगी,
अब भूल मेरी गलतियां-कहलाने लगी,
जिम्मेदारियां कंधों पर बोझ बनने लगी,
पहले बस्ता से कंधा झुका रहता था,
अब बस्ता नहीं है- मगर कंधा फिर भी झुका रहता है,
यार बचपना बहुत तड़पाता है।...
कमी किसकी है- पता नहीं हमें,
फिर-भी गुमशुदा रहते है हम।...❣️❣️❣️
ना मेरी पहुंच में वह है- ना हम उनकी पहुंच में- ए जिंदगी फिर क्यों मिलाया था तूने हमको ❣️❣️❣️
Others links to visit for 👇
१. ब्रह्मा थक गए थे। लोगों की जन्म से पहले किस्मत लिख-लिख कर। उन्हें मजा नहीं आ रहा था अब, वही सब देखने में जो उन्होंने लिख रखा था। तो इस बार उन्होंने एक प्रयोग करने की सोची और एक बच्चे को बिना किस्मत लिखे धरती पर भेज दिया। 9 महीने बाद इसका जन्म होता है। एक साधारण से आदमी की तरह ही दो हाथ दो पैर और हाथों पर लकीरे इंसानों की तरह ही।Continue reading 👈❤️
२. एक परिवार था। बदकिस्मत तो हर बंदे की तरह खुद को ही मानते थे। इसमें जो पिता था वो सरकारी नौकरी करता था। और पत्नी चार बच्चे होने के बाद अपने आप को जलाकर राख कर देती है।और बच्चों की जिम्मेदारी बाप के कंधों पर आ-जाती है।Continue reading 👈❤️
३. रोशन और उसका छोटा भाई साहिल, अपनी मम्मी-पापा के साथ गाँव मे रहते थे।कहने को तो वह अपने चाचा चाची दादा दादी के साथ के घर में रहते थे। मगर असल मे वो घर दो मकानो में बटाँ हुआ था।एक मे उनके चाचा-चाची और दादा-दादी रहते थे। और दसरे मे ये लोग । छोटा परिवार सुखी परिवार की तरह। माँ घर संभालती-पिता घर चलाने के लिए जाॅब पर जाता।Continue reading 👈❤️
४. एक शक्तिशाली राजा था। उस वक्त उससे लड़ने की क्या कोई और राज्य आँख उठाने तक की कोशिश नही करता था उस पर। मगर उसका एक बेटा भी था। वो थोड़ा बिगड़ हुआ था। बिगड़ हुआ का मतलब यह नही वो लड़ता था।मतलब यह कि उसको अपनी चापलूसी सुनना बहुत पसंद था। दरअसल वो राजा का बेटा था ना, तो लोग उसे प्रसन्न रखन की कोशिश करते। जिससे उन्हे ईनाम मिलता था राजा के बेटे कि ओर से। उसको अपनी तारीफ सुनने की लत लग गई। उसको बिना भनक लगो वो इस आदत का शिकार हो गया।Continue reading 👈❤️
Comments
Post a Comment