जिंदगी
समझ मे नही आ रहा -
क्या चल रहा है -
मैं तो ठहर सा गया हूँ -
फिर क्या दौड़ रहा है -
मैं तो मौत हूँ -
फिर कौन जी रहा है -
समझ में नही आ रहा है-
मैं नासमझ हो गया हूँ -
या सवाल अंजान हो गय है -
रातो मे जागने लगा हूँ -
लगता है अंधेरो को दिन समझ बैठा हूँ -
सूरज को चाँद,
आखिर मैं ऐसा क्यो होता जा रहा हूँ ,
मुझे समझ मे नही आ रहा है !
बस जीये- जा रहे है -
ना चाहते हुए भी मुस्कुरा रहे है !...
***
हमको भी मालूम है -
इस कहानी का अंत -
बस मासूम बने पड़े है -
हम उनके संग !...
- जिंदगी बिखड़ी सी है
- कमबख्त हम सुलझे है - सिर्फ !...
-***-
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