गरीब:- एक कथा
हिन्दी कहानी
कविता :👇
खाली पेट-एक रोटी-चार लोग,
एक को भूख नही,दूसरे को अच्छा नही लगता,
तिसरा आधा खाएगा, चौथा देखेगा खायेगा की नही,
फटी पेन्ट - जूते मे चोट, जुराब मे छेद;
और मुस्कराने की एक नकली कोशिश,
कंधे पर घर का बोझ, हाथो मे समय की छाल,
आँखो मे चिंगारी है, मगर सर पर गरीबी है,
खरीदने की इच्छाएँ है,
मगर जेब मे सिर्फ जीने लायक किराया है,
कार की है-शौक,
मगर बस के धक्के मे ही मजा आता है,
चाहता है समय देना परिवार को,
मगर सारा समय बीताता है काम पर,
घर की चौखट लाँघता है,
घर बनाने के लिए,
मगर उतना ही कमा पाता है मुश्किल से-
जितना पेट पल जाए खुशी से !
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पक्का छत्त है- मगर जमीं थोड़ी कम है,
चाहता है - जीना सबकी तरह,
मगर जीता है-वो दब-दब कर ही,
पुलिस षे डरता है- कोठी वालो को साहब बुलाता है,
और मंत्रीयो के आगो सिर भी नही उठाता है,
जीना भी नही चाहता वो,
मगर गरीबी मे मरने से डरता है,
ना सही से जी पाता है-
ना सही से मर पाता है,
बस सही से 'सह' पाता है!
एक रोटी के चार टूकडे करवाता है-
फिर-भी सब के सामने मुस्कुराने की कोशिश करता है,
शायद यही हर एक गरीब की छोटी-
मगर सच्ची कहानी है !
जिसको सुनने मे कोई तैयार नही है!
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