हिंदी कविता

 मोटिवेशन 


डर के रूक गय कदम,

फिर घर से निकले क्यो थे,

जब इतना ही डर है निंदा से,

तो इंसानी बस्ती मे पैदा हुए क्यो थे;

रहने दो-अगर नही हो सकता तो,

मगर घर से निकलो-तो पूरा करके ही लौटना।

वर्ना माँ के आँचल से,

माँ कि ख्वाहिश पूछ के घर से मत निकलना!...


                                      ***

ये तमाशे मुझे पसंद नही,

मै मुस्कुराने और रोने के लिए,

किसी और का आदि नही हूँ,

भीड़ से अलग हूँ, अलग पहचान है-मेरी,

बाहर वाले क्या कहते है,इससे फर्क नही पड़ता मुझे;

खुद मे जीता हूँ, खूद मे मरता हूँ,

जरूरत से ज्यादा और जरूरत से कम भी नही बोलता हूँ,

मैं इन रोज के ड्रामों से दूर रहता हूँ,

अपने मे मदमस्त खूब रहता हूँ,

ये तमाशे मुझे पसंद नही,

ये दो-तीन दिन के चोंचले मुझे पसंद नही;

और वो लोग क्या सोचते है,

ये सोचना मुझे पसंद नही !...






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