जिंदगी

 'दर्द-ए-जिंदगी' , तु खुशी भी तो दे ,

मानता हूं -मेरी है, मगर मुझको भी हक तो दे,

खैरत मे नहीं मिलाती तु हर किसी को, 

मगर -मेरी खुशी को खैरात तो मत बना,

इतने सालो-से जो प्यासा हूँ, 

कभी-मेरे हक की बारिश भी तो करा,

ऐ! जिंदगी कभी मेरी तकलीफ भी तो देख।

मै शिकायत नहीं कर रहा,

मगर विरोध जरूर कर रहा हूँ;

मेरी आवाज का तासीर भी तो देख,

गले मे जो खराश है, 

मुझे उस खराश का फल भी तो दे,

मै निराश नही,

मगर थक गया हूँ,

कई सालो से चल रहा हूँ,

और चलता रहूँगा, 

क्योकि मै 'इंसान' हूँ!

 





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