छोटी-छोटी कविताए
हवा
मैंने हवा से पूछा,
एक एक दिन तु,
बिना रुके कैसे बह लेता है,
कभी आंधी- तो कभी तूफ़ान बन जाता है,
आख़िर कर तु कैसे 24/7 घंटे, महीने,
साल बिना रुके बह लेता है,
वो बोला ; यह मेरा कर्तव्य है,
लोगो कि आश मेरी चाल से है,
मै हूँ- तभी यह सृष्टिचक्र है,
और रही सवाल आंधी और तुफान की,
वो तो बस आते इसलिए है,
ताकि बना सके तुम्हे और मजबूत जिंदगी,
लोगो कि किमत बताय लोगो कि;
मिल-जुल कर रहने कि!...
मंजिल
मंजिल मिलेंगी तु सब्र तो कत,
घर से निकल ,तु पहल तो कर,
महल ख्वाबों में भी बनते हैं,
मगर जब हकीकत हो तो और मजा आता है,
उसके लिए थोड़ा चलना-तपना-भूख - अनिद्रा सहन करना पड़ता है ,
तब जाके इंसान-इंसान बनता है,
मंजीले मिलेंगी तु सब्र तो कर,
घर से निकल पहल तो कर!..
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