आजादी


 क्या बात कहूँ ,आजादी पे;

स्वतंत्रता गोरो से पाई ,

मगर गुलामी अपनो ने ही धोखे में-दी ,

पहले जयचंद फिर मीर-जाफर;

कई है-विभिषण घर मे,

भीड़ बहुत है, मगर समझ कम,

गोरे तो चंद मुठी-भर थे,

उनको बढ़ावा दिया हमारे अपनो-ने,

पैसे के चक्कर मे लूट लिया ,

हमारे अपनो-ने,

आजादी पाई गोरो-से,

पहले मंगल-पांडे फाँसी पे चढा,

फिर बिच मे झाँसी-मे-रानी आई,

फिर शदियो बाद बापू और बोस आय,

य। जंग बड़ी लंबी चली,

क्योकि हर-बार हमारे अपने ही थे हमारे  विरूद्ध खड़े।

क्या बात कहू , आजादी पे,

स्वतंत्रता मुठी-भर से पाई;

मगर कब्जाया अपनो-ने था!

कुछ गद्दारो की सजा,

पाया पूरा भारतवंश ने था,

दो-पल की लालच ने,

दो-सदियाँ ले-ली हमारी गुलामी मे,

उसकी आजादी की कीमत,हम नौजवान आजकल के,

कहाँ जान पायेगो तन-मन से,

वो चिड़िया आजादी की कीमत,

जान पायेगी कैसे,

जो पिंजरे मे बंधी ना हो एक पल-भी,

हम आशिक खुद को कहने वाले,

क्या जान पायेगा खुदीराम-बोस की शहादत को,

हम गोरी बहनो पर मदमस्त मरने वाले,

क्या जान पायेगो काले बापू के अभिमान को,

क्या हम बचा पायेगो यह शहादत हमारे पूरखो की,

या फिर गुलाम हो जायेगो, हमारे अपनो के हाथो ही गौरो कि!

महाराणा-प्रताप से ज्यादा अकबर को मानने वाले हम;

क्या अभिमान कर पायेगो,


हम महाराणा कि शहादत का,

तुम मिल जाओ तो दुनियाँ छोड दु कहना वाले,



क्या समझ पायेगो जरा-सा भी भगतसिंह को-कभी!

या फिर हम गुलाम हो जायेगो,

अपनो के हाथो औरो कि!

क्या बात कहू आजादी पे,

शक्ति है,मगर खुद पर भरोसा नही,

भीड़ है मगर किसी काम की नही!

क्या बात कहू आजादी पर,

स्वतंत्रता गोरो से पाई,

मगर गुलामी तोहफे के रूप मे,

हमारे अपनो ने दी!....वरूण 



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