नजर
ना उम्मीद है दुनियाँ से,ना नाराजगी ही,
क्या कहूँ , जब इंसान है ही ऐसे!
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वो हर-बार कहता रहा, बेकसूर हूँ मैं,
दुनियाँ ने मजे के लिए मारा था बस उसे!
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मै रोज मंदिर जाया करता था,
गुनाह की माफी मांगने, मरने तक
मै रोज मंदिर जाता ही रहा!
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गंगा किनारे भीड़ बड़ी, रहती है,
लोग कहते है-पाप धोती है गंगा,
और पंडित को भी डूबकी लगाते देखा है मैने!
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मैने वक्त कि नाजूकता बांधे रखा हूँ,
अपने जहन मे, लोग कहते है कि वक्त
दुबारा लौटकर नही आता!
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और भी कई यादे है, मेरी जिंदगी मे,
मगर याद अक्सर वो बेवफाह ही कयू आता है!
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मैने तो बस यूँ-ही कह दी थी दिल की बात ,
उसे अपना समझ के, उसने तो किया खिलवाड
फिर खिलौना समझ के!
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बडी कसम-कस मे फस गई है,
जिंदगी ये मेरी ,
समझ मे नही आता कौन अपना और,
पराया है यहाँ!
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जो दौड बीत गया ,वो दौर फिर ना आयेगा,
इस दिले तुम्हारे सिवा कोई और ना आयेगा!
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