आत्महत्या


माना जीना बड़ा मुश्किल है,

पग-पग पर काँटे चुभते है,

अपने ही यहाँ अपनो का मजाक बनाते है,

मुँह पर राम का नाम लेकर काम रावण का करते है,

साथी बनकर साथ छोड जाते है,

राहो मे अकेले बेजान छोड जाते है,

इंसान खुद को बोल-बोलकर इंसानियत रोज लाँघने है,

मगर मर जाना -कैसा औचित्य है,

रस्सी से गले को चूम लेना,

क्या यही इंसान का कर्म है,

राधापुत्र को देखो,कितने दर्द सहे उसने,

मगर सच्च के पथ से वो हटा कब,

मौत सामने थी मगर वो खुद मरा कब,

रस्सी क के लिए है काम तमाम करने के लिए नही,

आत्महत्या एक पाप है, और पाप करके कौन स्वर्ग जाता है भला!

तुम कृष्ण को देखो,माँ कौन थी,पाला किसने,

जिसके लिए जन्म लिया वो मिली कब,

खुद मामा था तैयार जन्म से पूर्व मारने को,

मगर वो रोया कब,रस्सी को चूम के छूमा कब!

माना तुम भगवान नही हो!

मगर भगवान भी तो खुद इंसानी रूप मे थे,

दुख सहा कितना यह हम सब जानते है,

मगर रस्सी को चूमा कभी उन्होंने।

तो तुम खुद को क्यो दुनिया के सामने -

एक कठपुतली की तरह दर्शाता हो,

अपने जन्म लेने पर क्यो शर्मिंदगी दिलाते हो,

मौत आखिरी मंजील नही है, वो तो विधान है,

मगर मौत के बाद क्या होता है,क्या है पता तुमको, 

जो यह जिंदगी को बड़ साहस करके छोड जाते हो,

अपने माता-पिता को उम्रभर के लिए बेवजह छोड जाते है!

बहनो को पिछे अकेला छोड जाते हो!...

अपनी साँसो को छूडा कर बड़े साहस के साथ अपनो कि 

मुस्कान चूरा ले-जाते हो।....वरूण 



"जो काँटे ना हो तो फूलो को कौन पूछेगा,

जिसने दुख देखा नही ,उस बंदे को कुछ हीरो कहेगा!"...वरूण 


"सुशांत मर गया तो कोई बदलाव आया,

बस कुछ समय के लिए रिया बदनाम हुई,

मगर कोई काम हुआ,

मरने वाले से अंतिम बिदा या भेट की जाती है,

उम्मीद नही।"...वरूण 🌺🌺🌺

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