दर्द
याद करो जब जन्म हुआ था,
माँ ने तुम्हरी कितना दर्द सहा था,
जब तुमने चलना सिखा था,
तब गिर-गिर के कितना दर्द सहा था,
तो तुम अब इतना दर्द से क्यो डरते हो,
एक हार से डर के घर मे दुपक जाते हो,
ऐसा डरपोक बन के क्यो दिखलाते हो,
हल्के से दर्द से डर के खुद को कमजोर दिखाते हो,
दर्द ही जननी है,
कोयले को हीरे मे तब्दील कराती है,
दर्द ही जख्मी दिलो को दिलेर बनाती है,
दर्द ही साधारण को असाधारण बनाती है,
मगर यह भी सच्च है,
ताश के घर और काश वाले नर,
हवा कि एक झोंक से ही उड़ जाते है,
झूठी शान वाले टक्करा के टूट जाते है,
जो दर्द नही सहते वो कहाँ -
बड़ा बन पाते है।...वरूण
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