मेहनत रंग लाती है

 हिम से पिघल-पिघलकर बुँदे,

 समुद्र बन जाती है,

कौन कहता है कि मेहनत रंग नही लाती है,

जमाने बदले,काले बदले,रंग बदले, रूप बदल

  मगर जिन्होने वक्त पर मेहनत ना कि,

   उनकी बस सूरत और जरूरते बदली।

  मेहनत रंग लाती है,जरूर लाती है,

 मगर क्या कभी दो-चार बुँद समुद्र बनाती है,

फिर हमारे दो दिन कि मेहनत क्या रंग लायेगी,

हिम से पिघल-पिगलकर बुँदे भाप बन जायेगी

अगर लगातार नही गिरेंगे,तो क्या खाक समुद्र 

बन पायेगी।

कौन कहता है कि मेहनत रंग नही लाती,

तबियत से तु काम करके तो देख,

अगर किस्मत ना बदल जाय तो बताइयो मुझको।

कौन कहता है कि मेहनत रंग नही लाती,

मगर यह भी सच्च है कि:

   दो-चार सितारे आसमाँ रोशन नही करते,

  एक-दो दिन कि कोशिशे मिसाल नही बनती,

  कौन कहता है कि मेहनत रंग नही लाती,

अगर ऐसा होता तो हम इंसान आज जिंदा 

ना होते।...वरूण 

https://naiudaan2.blogspot.com/2021/07/blog-post_16.html

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