मोटिवेशन की डोज
रोज सहम-सहम के,डर-डर के जीने से तो अच्छा है-
हम मर जाय यारो,
लहरे से डर-डरकर बैठने से अच्छा है ,
डूब के तैरना सिखो यारो,
खाली-पिली जिंदगी बिताने से तो अच्छा है ,
रोज नई तिलिस्म गढ़ो यारो,
औरो के पैर पकडने से तो अच्छा हे,
हम खुद के पैर पे खड़े हो यारो,
इश्क मे रोज मरने से तो अच्छा है,
हम अकेले रहे यारो,
रोज सहम-सहम के ,डर-डर के जिने से तो अच्छा है,
कि हम एक घुट मे मर जाय यारो!...वरूण
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रागिनी घोर अंधेरे मे कब-तक टिकी रहेगी,जब सूर्य उदय होगी,तो कहाँ छूप सकेगी।... वरूण
अपनी जमीर खोकर जो मिले,
उससे अच्छा है कि हम जमीं पर ही रहे।...वरूण
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