प्रवासी
Hello guys!
Aaj ek chotti she prayash hai ,pravashiyo ki dard baya karne ki kahie galati ho jaye toh maaf karna aur pasand aaye toh share takie log jagrook ho sake........
THANKS....🙏🙏🙏
LET'S START:-
प्रवासी :-
शहर आया था,यह सोच के की ,घर चलाऊँगा अपना,
और शहर आया ,तो पता चला कि अपना गाँव ही सही
था अपना । मेरे यार , पर क्या करता पेट है जो गाँव में भरता नहीं,
और दिल है जो शहर में लगती नही,ना यहाँ जिया जाता है-
ना वहां भूखे पेट सोया जाता है,करे तो क्या करे ।
ना चैन यहाँ है,ना सुखी वहां।
जाय तो कहाँ जाय ,हम मजदूर है-साहब,
हम जिय तो जिय कहाँ ,
घर है गाँव में पर -जरूरत कहाँ जीने देती है ,
और काम है-शहर में तो दिल कहाँ लगने देती है।
हम मजदूर है-जनाब,घर पर भी उतना ही बेवस है ,
जितना कि हम यहाँ शहर में जनाब !
दर्द है पर कहे किस से, गाँव तो है-अपना,
पर जिम्मेदारियां भी तो है-जनाब!
हम जाय तो कहाँ जाय ।
यूँ ही उम्र-भर हम शहर- से-गाँव,
आते -जाते गुजार दे!
" हम जाय तो कहाँ जाय -जनाब "।
और आज लगता यह है कि:-
हम मजदूर है और मजबूर भी जनाब।
Please share...🙏🙏🙏
***
मजदूर
उठा के कुदाल,
जब घर से निकलता है,
आंखो मे घर की चिंता दिखता है,
जब सूरज भी बादलो के पिछे छूप जाता है,
यह तब भी अपना शौर्य चमकाता है,
औरो के घर को धूप,बारिश और सितम से बचाता है,
पर दुर्भाग्य उसी का घर हर सितम से हिल जाता है,
पर दिल की पीड़ा दिल मे दबाय वो पेट की आग के लिए लड़ता है,
सुबह घर से निकलता है और शाम को लौटता है,
आराम कमाने के लिए आराम त्यागता है,
मगर होंठो से वो कुछ भी नही कहता है,
सब सहते हुए वो चुप ही रहता है,
उठा के कुदाल, जब घर से निकलता है,
भूखा पेट वो सौ-मील चलता है,
पर फिर भी वो आराम नही करता है,
पेट की आग के लिए वो सब दर्द सहता है,
बेकसूर होते हुए भी कसूरो को सहता है,
अपनी जिम्मेदारी वो दर्द मे भी जानता है।
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