दादी-मां

                                   दादी-मां


चेहरे पर झुरिया,और बाल सफेद थे,

पर आंखो से वो अभी-भी नदान थी,

घर के हर काम वो अभी-भी संभाल सकती थी,

पर वो ऐसा ना करके अपना हूकूम जमाती-थी,

कभी ये कर तो -कभी वो कर ,ये ऐसे नही वैसे होता है,मेरी दादी-मां कमाल थी-वक्त की मिसाल थी,अनुभव का लिए गुमान थी,मेरी दादी-मां कमाल थी।सफेद बाल थे ,मगर मैने उनसे ज्यादा 

जवान भी आज तक नही देखा।चेहरे पर झुरिया  जरूर थी,मगर उनके स्वभाव मे ऐसा बहुत कम देखा,मैने अपनी दादी-मां जैसे नदान दिल और कही नही है देखा।वो चीजो को संभाल कर रखना जानती थी,भले ही ना पढ़ी हो ,मगर घर की गणित वो अच्छे से संभाल लेती थी,खेती नही करती,मगर खेत पर भी उनका ही राज था,

उनकी मर्जी के बिना,खेती कहाँ हो पाती थी।

उनके कदमो के बिना खेत मे पड़े-फसले नही लहलहाती-थी!

मेरी दादी-मां तो दादी-मां है।




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