भारतवासी
जग है ,बैरी-समाज,
मगर मैं प्यार के गीत लिए फिरता हूँ,
मैं अपना संस्कार साथ लिए फिरता हूँ,
मैं भारतवासी हूँ,
मैं अपना प्रताप लिए फिरता हूँ,
रण है,रण के मैदान है,
यहाँ आदमी-आदमी के खून के प्यासे है,
मगर मैं दगेबाज पडोसियों पर भी रहम करता हूँ,
अब्बासी हो या तुर्क मैं सब वंश को पानी दान करता हूँ,
मैं सारी समाज की आश लिए फिरता हूँ,
मैं अपना संस्कार साथ लिए फिरता हूँ,
मैं इस बैरी समाज में,शांति की गीत लिए फिरता हूँ,
मैं भारतवासी हूँ,मैं प्यार की सिख लिए फिरता हूँ,
मैं मर्यादापुरूषोत्तम की प्रतीक लिए फिरता हूँ,
जग है-बैरी समाज,मगर मैं प्यार के गीत लिए फिरता हूँ,
मैं अपना संस्कार साथ लिए फिरता हूँ,
मैं भारतवासी हूँ,शांति की सिख दिए फिरता हूँ ।
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