इंसान

 

मुझे मजहब से ना पुकारो,
मैं इंसान हूँ,
गाॅड/खुदा/भगवान नहीं,
मुझे धर्म से ना पुकारो,
मैं इंसान हूँ,
आस्था हूँ,विशवास हूँ,
कोई मूरत नहीं,
मै इंसान हूँ,
कोई दुआ नहीं ,
मैं रकतों और सांसो का  पुतला हूँ,
कोई मूरत,पत्थर या खुदा नहीं,
मुझे मत बाँटो,
यह अच्छा नहीं,
मैं इंसान हूँ,
कोई भगवान नहीं।
मैं भी तुम्हारी तरह दो हाथों,दो पैरों,
रक्त,माँस-पेशी वाला जीव हूँ,
मैं ना कोई काबा,ना शिवलिंग,ना क्राॅस हूँ,
मैं इंसान हूँ ,
सांसो का खेल हूँ,
मैं आस्था हूँ,विशवास हूँ,
कोई मूरत नहीं,
मैं इंसान हूँ,
कोई बांटने वाली चीज नहीं!
मैं इंसान हूँ। 
मैं इंसान हूँ।....वरूण 




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