सीमा
सीमा होती है,
🏞 दरिया से लेकर - समुद्र तक की,
मिट्टी से लेकर पर्वत तक 🏔 की,
तो बताओ क्या तुम्हारी कोई सीमा नही,
दर्द कब तक सहोगो,क्या तुम इंसान नहीं,
बेइज्जती कब तक सहोगो, क्या तुममें कोई सम्मान नहीं,
क्या तुम्हारा कोई मान-सम्मान नहीं,
सीमा होती है-सबकुछ की,तो क्या तुम्हरी कोई सीमा नही,
क्या इतना दर्द,तुम्हारे लिए है काफी नहीं।
तो बोलो तुम कब तक सहोगो,
कब-तक अपनी नाक रगड़ते रहोगे,
अरे!बोलो तुम।कितना सहोगो।....वरूण
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अदब से बात करो ,
उच्चे शाहों का घर है,
उन्हे पता नहीं कि
उनके प्यादे में कितना दम है।...🔥🔥🔥
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अदब-तहजीब सब करते है,
जरूरत पड़ने पर बाप-बाप कहते हैं।...🤴🤴🤴
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