इक-अकेला
मैं हजारों की भीड़ में,
इक-अकेला था,भीड़ में तो सब थे,
पर हम तो सिर्फ हम थे,
बेगाने तो बहुत थे,पर
अपने एक-भी ना थे,
पहचान तो थी सबसे,
पर परिचय सचा सिर्फ हमारा था,
भीड़ में तो बहुत थे पर गम में
एक सूखा पता तक न-नसीब हुआ,
भीड़ तो लोगो की थीं,
पर मैं खामा-खा इंसान समझ
बैठा था, मै हजारों की भीड़ में
इक -अकेला था,
जब भीड़ में था-तो अधीर में था,
पर जब अलग हुआ तो मुझे मेरी
असली ताकत का पता चला।
भीड़ तो लोगो की थीं, पर मैं खामा-खा इंसान समझ बैठा था। |
पर जब अलग हुआ तो मुझे मेरी
असली ताकत का पता चला।
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