बड़ी दूर से आए हैं-
थोड़ी देर इन पेड़ों पर ठहर जाए-क्या?
सुना बहुत है- मोहब्बत के बारे में,
वफा की बेवफाई के बारे में,
मोहब्बत की गुनाह के बारे में-
फिर-भी सोच रहा हूं-
यह गुनाह कर जाऊं क्या?
बड़ी दूर से आए हैं-
थोड़ी देर इन छावों में बदनाम हो जाए क्या?
फिर याद आता है- बड़ी दूर से आए हैं,
जिम्मेदारी उठाने ! मोहब्बत नहीं कर सकते हम!...
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द्रौपदी
पितामाह-गुरुवर-धृतराष्ट्र-विदुर-
क्या कर्म हुआ- रे !
ना सिर्फ सभा-पूरा समाज तृप्त हुआ रे!
चिरहरण तो बाद में- पहले समाज का पुरुषतत्व का वरन हुआ रे !
चिरहरण तो बाद में- पहले समाज का सर्वनाश हुआ-रे!
द्रौपदी तो कभी निर्वस्त्र नहीं हुई-
पर पूरा सभा-समाज का एक विपरीत चरित्र खुला रे !
चिरहरण तो बाद में-पहले ज्ञान हारा रे !
नपुंसको की वीरता-चीर हरण की गाथा हुआ रे!
चिरहरन तो बाद में-पहले मान हारा रे!
महावीर कर्ण इसी वजह से हारा रे!
यदुवंशियों का रक्त इसलिए बहा ले!
चीर हरण के बाद में-पहले संस्कार हारा रे !
अंधा तो सच में अंधा निकला ये !
यादव के सिवा-बाकी सारे मर्द-
नाम के मर्द और असल में नपुंसक निकले रे !
चीरहरण तो बाद में:-पहले रिश्ते हारे रे,
झूठी विरता की प्रतिज्ञा-गुरु का ज्ञान हारा रे!
पिता-पुत्री-बहन-भाभी-बिबी-शिष्या-
इन अमूल्य रिश्तों का मूल्य तौला गया रे !
चिरहरण तो बाद में:-
पहले पुरूषत्व- फिर ज्ञान- फिर झूठी शान हारा रे !
द्रौपदी तो निर्वस्त्र नहीं हुई पर -
समाज निर्वस्त्र हुआ रे!
चिरहरण तो बाद में - पहले परिवार हारा रे!
एक महिला को तड़पा के- क्या मिला रे ?
चीरहरण तो नाम था:-
हरण तो असल में सारा समाज हुआ था- पुत्र प्रेम-संस्कार-इज्जत प्रतिष्ठा-हुआ रे !
चीरहरण तो बाद में-पहले इंसान हारा रे -
खुद को सर्वोपरि मानने वाला पुरुषतत्व हारा रे !
चिरहरण तो बाद में- चीरहरण तो नाम का -
असल में हरण हुआ उस दिन यह झूठा संसार था!...
स्त्री को चोट पहुंचाने वाला- कहां सुखी रहा ये !
उनको पैर की जूती समझने वाला खुद नीचा निकला रे!
चीर हरण तो बाद में-चीरहरण तो नाम का,
असल में समाज का हरण हुआ रे!
स्त्री को चोट पहुंचाने वाला-पूरा परिवार खोया रे!
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